जब भी लगती है उन्हें प्यास
वे लिखते हैं
खुरदुरे कागज के चिकने चेहरे पर
कुछ बूँद पानी
और धधकने लगती है आग !
इसी आग की आँच से
बुझा लेते हैं वे
अपनी हर तरह की प्यास !
मदारियों के
आधुनिक संस्करण हैं वे
आग और पानी को
कागज में बाँधकर
जेब में रखना
जानते हैं वे!
- प्रेम नंदन
संपर्क –
उत्तरी शकुन नगर,
सिविल लाइन्स,
फतेहपुर, (उ०प्र०)|
मोबाइल – 09336453835
ईमेल - premnandan10@gmail.com
शुभकामनाएं
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (25-07-2017) को वहीं विद्वान शंका में, हमेशा मार खाते हैं; चर्चामंच 2677 पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
सुन्दर।
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