Sunday, August 24, 2014

अच्छा पाठक बनना भी एक कला.............. बेन ओकरी की राय

  • 'अच्छा लेखक बनने की पहली शर्त है अच्छा पाठक बनना। लेखन की कला के साथ ही पढ़ने की कला भी विकसित की जानी चाहिए ताकि हम और बुद्धिमत्ता व संपूर्णता के साथ लिखे हुए को ग्रहण कर सकें। मेरे लिए लिखना व पढ़ना दोनों निर्युक्तिदायक प्रक्रियाएं हैं।' ये उद्गार थे अफ्रीकी लेखक बेन ओकरी के।

अंग्रेजी में लिखने वाले बेन ओकरी दुनियाभर के पाठकों के बीच अपनी जगह बना चुके हैं। उनकी रचनाओं का दुनिया की बीस भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। 'द फेमिश्ड रोड' के रचनाकार को अपने बीच पाकर श्रोता मंत्रमुग्ध थे।


खचाखचभरे पांडाल में भी सुई तोड़ सन्नाटे में बैठकर लोगों ने ओकरी की बातों को और उनके रचना पाठ को सुना। उन्होंने अपनी मां के बारे में कविता पढ़ी। मोटे तौर पर शीर्षक का अनुवाद था 'सोती हुई मां'। उनकी पढ़ी एक अन्य कविता का अर्थ है- 'दुनिया में आतंक है तो दुनिया में प्यार भी है। मोहब्बत से भरी है यह दुनिया।'

लेखक ने अपनी रचना प्रक्रिया के बारे में भी बताया। नाइजीरियाई वाचिक परंपरा व आधुनिक विश्व का संगम अपनी रचनाओं में करने वाले इस लेखक के साथ बातचीत की चंद्रहास चौधरी ने।


एक अन्य सत्र में 'द पावर ऑफ मिथ' यानी मिथकों की शक्ति के बारे में लेखक गुरुचरण दास ने अरशिया सत्तार, जौहर सिरकार व अमिष त्रिपाठी से चर्चा की।


त्रिपाठी की भारतीय पौराणिकता के फॉर्मेट में लिखी दो किताबें 'द इम्मोरटल्स ऑफ मेहुला' व 'द सीक्रेट ऑफ नागास' बहुत चर्चित हुई हैं। इन किताब की प्रतियां लाखों में बिक चुकी हैं। इसे पौराणिक किस्सों के जादुई तिलस्म का प्रतीक मानें या और कुछ, फिलहाल तो पौराणिकता फिर चर्चा में है।


पौराणिक प्रतीकों की शक्ति की चर्चा करते हुए वक्ताओं ने कहा- 'पौराणिक किस्से हमें रस्मों और परंपराओं के रूप में प्रदान किए जाते हैं। इनमें से कुछ हमारे लिए धर्म का हिस्सा भी बन जाते हैं। पर कुल मिलाकर यह सदियों से बहते आए ज्ञान की गंगा बन जाते हैं। पौराणिक किस्से एक ऐसा झूठ है जो सच बताते हैं। इन किस्सों की कल्पना की उड़ान पढ़ने-सुनने का जादू जगाती है। अक्सर इन किस्सों के पात्र पर थीम कालातीत होती है।'

तमिल में लिखने वाली दलित लेखिका बामा फॉस्टीना ने अपने आत्मकथात्मक उपन्यास कारुकू की रचना प्रक्रिया के बारे में बताया। तमिलनाडु के दूर-दूरस्थ गांव में रहते पली-बढ़ी लेखिका ने कहा- कारुकू का मतलब पान की कटीली पत्ती होता है। उनके समुदाय ने वैसा ही जीवन जिया है। बामा के उपन्यास को कई प्रकाशकों ने अस्वीकृत कर दिया था। अंततः एक चेरिटेबल ट्रस्ट ने इसे प्रकाशित किया और पढ़ने पर पाठकों ने इसे सराहा।


इसी सत्र में तमिल लेखक चारू निवेदिता ने भी अपना वक्तव्य रखा। विषय प्रवर्तन किया लेखिका व आयोजन की निदेशक नमिता गोखले ने। शब्द जगत के अलावा सुनहले पर्दे पर साहित्य लिखने वाले भी यहां मौजूद हैं व विभिन्न सत्रों में भागीदारी कर रहे हैं। गुलजार प्रसून जोशी के साथ अपने कहानी सत्र में छाए रहे। इन दोनों को सुनने के लिए दर्शकों में इतनी आतुरता थी कि आयोजकों को वेन्यू बदलना पड़ा। विधुविनोद चोपड़ा, अनुपमा चोपड़ा, संजना कपूर आदि फिल्मी हस्तियां भी हैं। लोग उत्साह और एकाग्रता से विश्लेषण सुन रहे हैं।





प्रस्तुतिः निर्मला भुराड़िया
 
यह आलेख पूर्व में धरोहर में प्रकाशित हो चुकी है 





8 comments:

  1. बहुत सुंदर. काश कि मैं भी वहाँ होता

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  2. सही बात पढ़ना जरूरी है लिखने से ज्यादा :)

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  3. sach mey likhna padhna dono jaroori hai

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  4. वाकई अच्छा पाठक बनना भी एक कला है। पाठक के हिसाब से देखें तो सबसे बुरी हालत हिन्दी की है। यहाँ जितने रचनाकार हैं अगर उतने भी पाठक होते तो हिन्दी साहित्य की स्थिति बेहतर होती ॥

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  5. वाकई अच्छा पाठक बनना भी एक कला है। पाठक के हिसाब से देखें तो सबसे बुरी हालत हिन्दी की है। यहाँ जितने रचनाकार हैं अगर उतने भी पाठक होते तो हिन्दी साहित्य की स्थिति बेहतर होती ॥

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  6. सुंदर प्रस्तुति...

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