बहुत सम्भाल के रक्खी तो पाएमाल हुई
सड़क पे फेंक दी तो जिन्दगी निहाल हुई
बड़ा लगाव है इस मोड़ को निगाहों से
कि सबसे पहले यहीं रोशनी हलाल हुई
कोई निज़ात की सूरत नहीं रही, न सही
मगर निज़ात की कोशिश तो एक मिसाल हुई
मेरे ज़ेहन पे ज़माने का वो दबाव पड़ा
जो एक स्लेट थी वो ज़िंदगी, सवाल हुई
समुद्र और उठा, और उठा, और उठा
किसी के वास्ते ये चांदनी वबाल हुई
उन्हें पता भी नहीं है कि उनके पांवो से
वो खूं बहा है कि ये गर्द भी गुलाल हुई
मेरी ज़ुबान से निकली तो सिर्फ नज़्म बनी
तुम्हारे हाथ में आई तो एक मशाल हुई
पाएमालः रौंदी हुई
-दुष्यन्त कुमार
प्राप्ति स्रोतः मधुरिमा
वाह बहुत सुंदर ।
ReplyDeleteसुन्दर गज़ल
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति...
ReplyDeleteदिनांक 21/08/2014 की नयी पुरानी हलचल पर आप की रचना भी लिंक की गयी है...
हलचल में आप भी सादर आमंत्रित है...
हलचल में शामिल की गयी सभी रचनाओं पर अपनी प्रतिकृयाएं दें...
सादर...
कुलदीप ठाकुर
बढ़िया प्रस्तुति , आ. यशोदा जी धन्यवाद !
ReplyDeleteInformation and solutions in Hindi ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
ये सुबहो शफ़क फूल उठी वो शाम शम्मे-रूई..,
ReplyDeleteवक्त की रानाई भी लम्हे में रोजो-साल हुई.....
वाह ...बहुत ही बढिया प्रस्तुति
ReplyDeleteBeautiful Writing..
ReplyDeletehttp://swayheart.blogspot.com/2014/09/blog-post_35.html