Monday, August 18, 2014

छिड़क रहे हैं इत्र लोग.......कलीम अव्वल




कितने मिले विचित्र लोग
वसन फाड़ते मित्र लोग

पत्थर से बैठे गुमसुम
जैसे, बस, हों चित्र लोग

योनाचार-रत संत यहां
फिर, भी, कहें पवित्र लोग

किस पर अब विश्वाश करें
धारे छली चरित्र लोग

फैली है दुर्गंध बहुत
छिड़क रहे हैं इत्र लोग

-कलीम अव्वल

प्राप्ति स्रोतः हेल्थ, पत्रिका

7 comments:

  1. बहुत सुन्दर और भावुक अभिव्यक्ति

    जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाऐं ----
    सादर --

    कृष्ण ने कल मुझसे सपने में बात की -------

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  2. गज़ब। क्या खूब लिखा है

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  3. किस पर अब विश्वाश करें
    धारे छली चरित्र लोग

    फैली है दुर्गंध बहुत
    छिड़क रहे हैं इत्र लोग
    गज़ब अभिव्यक्ति-
    पत्थर से बैठे गुमसुम
    जैसे, बस, हों चित्र लोग

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  4. बहुत सुन्दर , पर इत्र से कब तक पाप छिपाएंगे?

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  5. bahut khoob....sach hai kab tak itr dhak payegi pap ko

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