Thursday, August 14, 2014

सरहद हमसे वफ़ा चाहती है............सागर 'सयालकोटी'




   सरहद हमसे क्या चाहती है
सरहद हमसे वफ़ा चाहती है

दीवारों का होना बहुत ज़रूरी है
सरहद ऐसी रज़ा चाहती है

माज़ी को अब भुलाना ही होगा
सरहद ताज़ा हवा चाहती है

मुश्तरका आसमानों से पूछो
सरहद रक़्से अदा चाहती है

अम्नों-अमां से मसाइल का हल हो
सरहद आसी फ़ज़ा चाहती है

सबके सबकी ख़ुशियां मुबारक
सरहद सबकी दुआ चाहती है

'सतलज', 'रावी', 'ब्यासा' का पानी
सरहद 'सागर' मज़ा चाहती है

-सागर 'सयालकोटी'
स्रोतः मधुरिमा

5 comments:

  1. बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल। आपकी ये उत्कृष्ट प्रस्तुति भी कल शुक्रवार (15.08.2014) को "विजयी विश्वतिरंगा प्यारा " (चर्चा अंक-1706)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, चर्चा मंच पर आपका स्वागत है, धन्यबाद।

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  2. सही कहा---सरहद हमसे वफ़ा चाहती है.

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  3. बेहतरीन ग़ज़ल...

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