Friday, July 25, 2014

औरतें...............श्रीमती रश्मि रमानी



 











हां
स्त्री ही है वह
सूर्यमुखी की तरह
जिसके सूर्य को निहारने भर से
झरता है भीतर के अंधेरों में
पीला प्रकाश।

जिस खुशमिजाज अजनबी के साथ
बड़ी आसानी से तय कर लिया जाता है
वीरानों का उदास सफर
यकीनन
हो सकती है वो कोई औरत ही
आसमान की तरह साधारण
हवी-सी मुक्त
और पानी जैसी पारदर्शी
संसार में कोई है
तो बेशक
वह स्त्री ही है।

दुनिया जहान के जंगल में
राह भूले मुसाफिर को मिल जाती है
किसी पगडंडी की तरह
और, आसानी से पहुंचा देती है सही मुकाम पर
कोई और नहीं वो औरत ही होती है


जिंदगी के सफर को आसान बनातीं
वे हथेलियां औरतों की ही होती हैं


जिन पर चलते नहीं थकते मर्दों के पांव
बहुत ज्यादा न सही
पर उनकी मौजूदगी
बचा सके मर्द के वजूद को झुलसने से
इतनी तो दे ही देती है छांव।



- श्रीमती रश्मि रमानी


स्रोतः वेब दुनिया

8 comments:

  1. सार्थक पोस्ट.....

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  2. लाजवाब ...सच में वह स्त्री ही है

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  3. स्त्री ही है वह
    .सच स्त्री से ही ये जहाँ है

    बहुत सुन्दर सार्थक प्रस्तुति

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  4. बहुत सुन्दर सार्थक प्रस्तुति

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  5. जिसके सूर्य को निहारने भर से
    झरता है भीतर के अंधेरों में
    पीला प्रकाश।
    वाह क्या खूबंसूरत एहसास है

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  6. Stri mahaan hai....sunder rachna....

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  7. बहुत सुन्दर, बेहतरीन प्रस्तुति

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