दिल की कोमल धरा पर
धँसी हुई है
तुम्हारी यादों की किरचें
और
रिस रहा है उनसे
बीते वक्त का लहू,
कितना शहद था वह वक्त
जो आज तुम्हारी बेवफाई से
रक्त-सा लग रहा है।
तुम लौटकर आ सकते थे
मगर तुमने चाहा नहीं
मैं आगे बढ़ जाना चाहती थी
मगर ऐसा मुझसे हुआ नहीं।
तुम्हारी यादों की
बहुत बारीक किरचें है
दुखती हैं
पर निकल नहीं पाती
तुमने कहा तो कोशिश भी की।
किरचें दिल से निकलती हैं तो
अँगुलियों में लग जाती है
कहाँ आसान है
इन्हें निकाल पाना
निकल भी गई तो कहाँ जी पाऊँगी
तुम्हारी यादों के बिना।
वाह। गज़ब
ReplyDeletewah shandar abhivyakti
ReplyDeleteबहुत खूब
ReplyDeleteलाजवाब
सुन्दर अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteनई पोस्ट माँ है धरती !
सुन्दर रचना...
ReplyDeleteपढते-पढते रिसने लगा दिल---यादों की किरचें.
ReplyDeleteYoon bayaan kar di aap ne mere dil ki dastaan, Raz phash karne se pahle poochh to lete |
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