भंग निशा की नीरवता कर
इस देहाती गाने का स्वर
ककड़ी के खेतों से उठकर,
आता जमुना पर लहराता
कोई पार नदी के गाता।
इस देहाती गाने का स्वर
ककड़ी के खेतों से उठकर,
आता जमुना पर लहराता
कोई पार नदी के गाता।
होंगे भाई-बंधु निकट ही
कभी सोचते होंगे यह भी
इस तट पर भी बैठा कोई,
उसकी तानों से सुख पाता
कोई पार नदी के गाता।
आज न जाने क्यों होता मन
सुनकर यह एकाकी गायन
सदा इसे मैं सुनता रहता,
सदा इसे मैं गाता जाता
कोई पार नदी के गाता।
-हरिवंशराय बच्चन
बच्चन जी की हर कविता लाजवाब है ।
ReplyDeleteनमन उन्हें और उनकी कलम को .... साझा करने के लिए शुक्रिया यशोदा ...
ReplyDeleteभाषा की सहजता बच्चन को बच्चन बनाती है...
ReplyDeleteBacchan ji ki khubsurat rachna.....shukriya isss post me liye
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