Friday, July 18, 2014

कोई पार नदी के गाता...........हरिवंशराय बच्चन




भंग निशा की नीरवता कर
इस देहाती गाने का स्‍वर
ककड़ी के खेतों से उठकर,
आता जमुना पर लहराता
कोई पार नदी के गाता।


होंगे भाई-बंधु निकट ही
कभी सोचते होंगे यह भी
इस तट पर भी बैठा कोई,
उसकी तानों से सुख पाता
कोई पार नदी के गाता।


आज न जाने क्‍यों‍ होता मन
सुनकर यह एकाकी गायन
सदा इसे मैं सुनता रहता,
सदा इसे मैं गाता जाता
कोई पार नदी के गाता। 


-हरिवंशराय बच्चन

4 comments:

  1. बच्चन जी की हर कविता लाजवाब है ।

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  2. नमन उन्हें और उनकी कलम को .... साझा करने के लिए शुक्रिया यशोदा ...

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  3. भाषा की सहजता बच्चन को बच्चन बनाती है...

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  4. Bacchan ji ki khubsurat rachna.....shukriya isss post me liye

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