Monday, July 14, 2014

काश कि ऐसा होता..........अनन्त माहेश्वरी


 
अनगढ़ पत्थरों में अक्श तलाशता
उन्हें सुघड़ बनाने की कोशिश करता
इस कोशिश में चोटिल होता

लेकिन हिम्मत नहीं हारता
वह बेजान पत्थरों में जान डालता

शिल्पी का शिल्प जब साकार हुआ
बेजान थी वह मूरत,जिससे उसे प्यार हुआ

एक दिन कला का पारखी आया
ले गया उस मूरत को,
जिसे शिल्पी ने दिलो जान से सजाया.

काश कि ऐसा होता
शिल्पकार का दिल पत्थर का होता
तो अपनी प्यारी मूरत के जाने पर
वह नहीं रोता, वह नहीं रोता

-अनन्त माहेश्वरी, खण्डवा, मध्य प्रदेश
स्रोतः रसरंग

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