Tuesday, April 7, 2020

दायरे से वो निकलता क्यों नहीं ...ममता किरण

दायरे से वो निकलता क्यों नहीं
ज़िंदगी के साथ चलता क्यों नहीं

बोझ सी लगने लगी है ज़िंदगी
ख़्वाब एक आँखों में पलता क्यों नहीं

कब तलक भागा फिरेगा ख़ुद से वो
साथ आख़िर अपने मिलता क्यों नहीं

गर बने रहना है सत्ता में अभी
गिरगिटों सा रंग बदलता क्यों नहीं

बातें ही करता मिसालों की बहुत
उन मिसालों में वो ढलता क्यों नहीं

ऐ ख़ुदा दुख हो गये जैसे पहाड़
तेरा दिल अब भी पिघलता क्यों नहीं

ओढ़ कर बैठा है क्यूँ खामोशियाँ
बन के लौ फिर से वो जलता क्यों नहीं

क्या हुई है कोई अनहोनी कहीं
दीप मेरे घर का जलता क्यों नहीं.
-ममता किरण

3 comments:

  1. बहुत बढ़िया

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  2. ओढ़ कर बैठा है क्यूँ खामोशियाँ
    बन के लौ फिर से वो जलता क्यों नहीं
    आज के हालात पर बहुत ही सटिक सवाल, यशोदा दी।

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  3. बहिन यशोदा जी,
    बहुत प्यारी कविता लिखी आपने।

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