Sunday, April 19, 2020

शब भी जाती है पर सहर करके ....‘ग़ाफ़िल’

क्या मिला इसको मुख़्तसर करके
लुत्फ़ था ज़ीस्त का सफ़र करके

ख़्वाहिश अपनी कभी तो हो पूरी
जाए हमको भी कोई सर करके

न मिला जो मुक़ाम जीते जी
पाते देखा है उसको मर करके

जाए जब तो ख़बर करे न करे
आए कोई तो बाख़बर करके

कोई हँसता है दर-ब-दर होकर
कोई रोता है दर-ब-दर करके

कोई जी को कभी न जी समझा
कोई रहता है जी में घर करके

ग़ाफ़िल ऐसे ही जाना क्या जाना
शब भी जाती है पर सहर करके

-‘ग़ाफ़िल’

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