Sunday, April 5, 2020

सफ़ेद कुरता....नीलिमा शर्मा

अब तुम कही भी नही हो
कही भी नही
ना मेरी यादों में
न मेरी बातों में

अब मैं मसरूफ रहती हूँ
दाल के कंकड़ चुन'ने में
शर्ट के दाग धोने में
क्यारी में टमाटर बोने में

एक पल भी मेरा
कभी खाली नही होता
जो तुझे याद करूँ
या तुझे महसूस करू

मैंने छोड़ दिए
नावेल पढने
मैंने छोड़ दिए है
किस्से गढ़ने

अब मुझे याद रहता हैं बस
सुबह का अलार्म लगाना
मुंह अँधेरे उठ चाय बनाना
और सबके सो जाने पर
उनको चादर ओढ़ाना

आज तुमको यह कहने की
क्यों जरुरत आन पढ़ी हैं
सामने आज मेरी पुरानी
अलमारी खुली पड़ी हैं

किस्से दबे हुए हैं जिस में
कहानिया बिखरी सी
और उस पर मुह चिढ़ाता
तेरा उतारा सफ़ेद कुरता भी

नही नही !!अब कही भी नही हो
न मेरी यादो में न मेरी बातो में
फिर भी अक्सर मुझको सपने में
यह कुरता क्यों दिखाई देता हैं ......
- नीलिमा शर्मा


6 comments:

  1. सुन्दर रचना

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  2. बस कहने भर से यादें कहा धूमिल होती है।जितना बिसराना चाहो उतनी हीऔर पसरती हैं ।
    हाँ यादें तब धूमिल समझना जब व्यस्त रहने की जरूरत न पड़े।जब यूँ कविता गढ़ने की जरूरत न पड़े
    बहुत सुन्दर... हृदयस्पर्शी सृजन।

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  3. वाह!खूबसूरत सृजन !

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  4. अप्रतिम् भाव

    वो ज़िन्दगी ही क्या.....जिसमें,
    नामुमकिन सा.. कोई सपना न हो.💖

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  5. स्त्री विमर्श पर रचित भावपूर्ण मुक्त कविता! वर्तनी शुद्ध होती तो और अच्छा रहता।

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