Monday, May 27, 2019

एक फ़साना लगता है ....डॉ.नवीन मणि त्रिपाठी

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बादल का अंदाज जुदा सा लगता है ।
सावन सारा सूखा सूखा लगता है ।।

जाने क्यूँ मरते हैं उस पर दीवाने ।
इश्क़ उसे जब खेल तमाशा लगता है ।।

काहकशाँ से टूटा जो इक तारा तो ।
चाँद का चेहरा उतरा उतरा लगता है ।।

तेरी अना से टूट रहा है वह रिश्ता ।
जिसकी ख़ातिर एक ज़माना लगता है ।।

आग से मत खेला करिए चुपके चुपके ।
घर जलने में एक शरारा लगता है ।।

दर्द विसाले यार ने ख़त में है लिक्खा ।
उस पर सुबहो शाम का पहरा लगता है ।।

छुप छुप कर सबने देखा रोते जिसको ।।
उसके दिल का ज़ख़्म पुराना लगता है ।

शम्अ जलेगा परवाना इक दिन तुुुझ से ।
हुस्न का तेरे ये दीवाना लगता है ।।

मांग रहा है वफ़ा के बदले जान कोई ।
कैसे कह दूं नेक इरादा लगता है।।

तुझको सारी रात निहारा करते हम ।
चाँद बता तू कौन हमारा लगता है ।।

लिख डाला है तुमने जो कुछ पन्नों में ।
यह तो मेरा एक फ़साना लगता है ।।

-डॉ.नवीन मणि त्रिपाठी 

शब्दार्थ - 
काहकशाँ - शुद्ध फ़ारसी शब्द 
उर्दू में कहकशाँ हिंदी में तारामंडल
शरारा -चिंगारी


मौलिक अप्रकाशित

13 comments:

  1. काहकशाँ से टूटा जो इक तारा तो ।
    चाँद का चेहरा उतरा उतरा लगता है ।।
    अत्यन्त सुन्दर.....,

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    1. तहेदिल से बहुत बहुत शुक्रिया

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    2. तहेदिल से बहुत बहुत शुक्रिया

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  2. Replies
    1. तहेदिल से बहुत बहुत शुक्रिया

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  3. आ0 अग्रवाल जी मेरी ग़ज़ल स्थान देने के लिए तहेदिल से बहुत बहुत शुक्रिया ।
    सादर नमन ।

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  4. बेहतरीन प्रस्तुति

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  5. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार मई 28, 2019 को साझा की गई है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  6. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (28-05-2019) को "प्रतिपल उठती-गिरती साँसें" (चर्चा अंक- 3349) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  7. बहुत उम्दा /बेहतरीन प्रस्तुति।

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  8. बादल का अंदाज जुदा सा लगता है ।
    सावन सारा सूखा सूखा लगता है ।।
    बहुत खूब , सादर नमस्कार

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