अभी हाल दिल का सुनाया नही है।
किसी को जख्म ये दिखाया नही है।
मेरे इश्क का है ऐसा असर दिलबर।
उसने अब तलक मुझे भुलाया नही है।।
मुहब्बत में किये कई वादे उसने।
मगर उनको रहबर निभाया नही है
बयां क्या करें उन गुनाहों को हरपल।
जहां में ऐसा सनम पाया नही है।
दोस्त है कि दुश्मन वो मेरा पुराना।
ये मेरे आज भी समझ आया नही है।
लुत्फ़ हम उठायें ऐसे कैसे दिलबर।
सफर में मिला कोई भाया नही है।।
कयामत न आ जाये इक रोज देखना।
मेरा चांद घर मेरे आया नही है।।
-प्रीती श्रीवास्तव
वाह
ReplyDeleteसुन्दर
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (31-05-2019) को "डायरी का दर्पण" (चर्चा अंक- 3352) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
मन से निकली हुयी रचना मन तक जाती है
ReplyDeleteदोस्त है कि दुश्मन वो मेरा पुराना।
ReplyDeleteये मेरे आज भी समझ आया नही है।
समझना तो पडेगा ही ... बहुत सुंदर
मेरे इश्क का है ऐसा असर दिलबर।
ReplyDeleteउसने अब तलक मुझे भुलाया नही है।बेहतरीन !