क्या लिखूँ मैं,
मेरे ख़ुदा मुझे एक कविता चाहिए।
कभी न सही
अभी और इसी वक़्त चाहिए।
मेरे ख़ुदा मुझे एक कविता चाहिए,
ताज न शोहरत चाहिए।
मेरे ख़ुदा मुझे
कुछ शब्द चाहिए।
लिख सकूँ दिल की बात
टूटी बिखरी यादों के अल्फ़ाज़
ढूँढ रही स्वछंद छंद।
ऐसी पंक्ति की कविता चाहिए
मेरे ख़ुदा मुझे एक शब्द चाहिए।
मेरे ख़ुदा मुझे एक कविता चाहिए।
-सरिता यादव
वाह
ReplyDeleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (19 -05-2019) को "हिंसा का परिवेश" (चर्चा अंक- 3340) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
....
अनीता सैनी
अति सुन्दर ।
ReplyDeleteबहुत खूब ,सादर नमस्कार
ReplyDeleteवाह!!सुंदर!
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