Sunday, May 19, 2019

एक प्रेमगीत-सात रंग का छाता बनकर....जयकृष्ण राय तुषार

सात रंग का
छाता बनकर
कड़ी धूप में तुम आती हो ।
अलिखित
मौसम के गीतों को
मीरा जैसा तुम गाती हो ।

जब सारा 
संसार हमारा साथ
छोड़कर चल देता है,
तपते हुए
माथ पर तेरा
हाथ बहुत सम्बल देता है,
आँगन में
चाँदनी रात हो,
चौरे पर दीया-बाती हो ।

कभी रूठना
और मनाना
इसमें भी श्रृंगार भरा है,
बादल-बिजली के
गर्जन से
अमलतास वन हरा-भरा है,
बार -बार
पढ़ता सारा घर
तुम तो एक सगुन पाती हो ।
-जयकृष्ण राय तुषार

8 comments:

  1. आदरणीया यशोदा जी इतना सम्मान और स्नेह देने के लिए आपका हृदय से आभार

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  3. नारी के गरिमामय रुप का बहुत सुन्दर चित्रण । बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ।

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  4. सुन्दर रचना

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  5. बहुत मोहक कोमल बिंबों से सजी कोमल रचना।

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  6. तपते हुए
    माथ पर तेरा
    हाथ बहुत सम्बल देता है,..क्‍या खूब कहा है तुषार जी ने

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  7. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (20-05-2019) को "चलो केदार-बदरी" (चर्चा अंक- 3341) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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