Saturday, August 26, 2017

ढल गया आफताब.............सुदर्शन फ़ाकिर


ढल गया आफताब ऐ साकी!
ला पिला दे शराब ऐ साकी!

या सुराही लगा मेरे मूंह से
या उलट दे नकाब ऐ साकी!

मैकदा छोड़ कर कहाँ जाऊं
है ज़माना ख़राब ऐ साकी!

जाम भर दे गुनाहगारों के
ये भी है इक सवाब ऐ साकी!

आज पीने दे और पीने दे
कल करेंगे हिसाब ऐ साकी!


4 comments:

  1. बहुत -बहुत आभार आदरणीय यशोदा बहन जी पाठकों के लिए श्रेष्ठ रचना को साझा करने के लिए। सादर।

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