Tuesday, August 8, 2017

और कई कुंतियाँ........आशीष "वैरागी"

जाम कब्ज़ों में फँसे अंधे किवाड़
देख संजय, खिड़कियों के पार क्या है॥

सात किरणों की लगामें सूर्य पर थी
और उत्तरों में फँसी कुंती बेचारी॥

वो कौन था जिसने कर्ण को लांछित किया
अरे सूर्य ही तो स्रोत है सृष्टि का सारी॥

इस धरा पर ताप बिन कोई जिया क्या
फिर कहो उन पांडवों का दोष क्या था॥

धर्म रक्षा में हुई संतान-क्षतियाँ
पर कुंतियों, गंधारियों का दोष क्या था॥

जिनका, धर्म से, संदर्भ से, पौरुष बढ़ा है 
उन मनुजों, अज्ञानियों का पार क्या है॥
-आशीष "वैरागी"
ashish.vairagyee@gmail.com

3 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (09-08-2017) को "वृक्षारोपण कीजिए" (चर्चा अंक 2691) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. सुन्दर अभिव्यक्ति !आभार। "एकलव्य"

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