Thursday, August 10, 2017

फांद गए आग पर....गोपाल "गुलशन"


देखकर तेरी रजा को, डूब मैं इतना गया।
पागलों सा हो गया, अश्क नैनों में भरा॥

चल पड़ा उस ओर मैं, उम्मीद एक जोड़कर।
फूल-फूल चुन लिए, पात-पात छोड़कर॥

हौसले बुलन्द हुए, संकेत तेरा मिल गया।
देखकर तेरी रजा को, डूब मैं इतना गया॥

सब्र न अब हो सका, प्यार का पहरा हुआ।
संगीत के छन्द भी, साथ मेरे चल दिए॥

एक छन्द ने कहा, प्यार आज हो गया।
देखकर तेरी रजा को, डूब मैं इतना गया॥

कदम तो अब बढ़ गया, आस की राह थी।
फांद गए आग पर, न जान की परवाह की॥

ख्वाब बस एक था, ओंठ तेरी चूम लूँ।
बाँह तेरी डालकर, एक बार झूम लूँ॥

संगीत भी चल रहा, काव्य न पूरा हुआ।
देखकर तेरी रजा को,डूब मैं इतना गया॥

बाराबंकी (उत्तर प्रदेश) 

3 comments:

  1. धन्यवाद यशोदा जी!!

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (11-08-2017) को "हम तुम्हें हाल-ए-दिल सुनाएँगे" (चर्चा अंक 2693) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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