Monday, August 14, 2017

थम न जाए कहीं जुनूँ....फरिहा नकवी

ऐ मिरी ज़ात के सुकूँ आ जा 
थम न जाए कहीं जुनूँ आ जा 

रात से एक सोच में गुम हूँ 
किस बहाने तुझे कहूँ आ जा 

हाथ जिस मोड़ पर छुड़ाया था 
मैं वहीं पर हूँ सर निगूँ आ जा 

याद है सुर्ख़ फूल का तोहफ़ा? 
हो चला वो भी नील-गूँ आ जा 

चाँद तारों से कब तलक आख़िर 
तेरी बातें किया करूँ आ जा 

अपनी वहशत से ख़ौफ़ आता है 
कब से वीराँ है अंदरूँ आ जा 

इस से पहले कि मैं अज़िय्यत में 
अपनी आँखों को नोच लूँ आ जा 

देख! मैं याद कर रही हूँ तुझे 
फिर मैं ये भी न कर सकूँ आ जा 
-फरिहा नकवी
प्रस्तोताः अशोक खाचर

3 comments:

  1. बहुत सुन्दर‎ ........,

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  2. बुलाने के लिये इससे अच्छा न्योता नहीं हो सकता . लाज़वाब

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