आता है कौन दर्द के मारों के शहर में
रहते हैं लोग चांद सितारों के शहर में
मिलता तो है ख़ुशी की हकीकत का कुछ सुराग
लेकिन नज़र फ़रेब इशारों के शहर में
उन अंखड़ियों को देख होता है ये गुमां
हम आ बसे हैं बादा-ग़ुसारों के शहर में
ऐ दिल तेरे ख़ुलूस के सदके ज़रा सा होश
दुश्मन भी बेशुमार हैं यारों के शहर में
देखें 'अदम' नसीब में है क्या लिखा हुआ
दिल बेंचने चले हैं निगारों के शहर में
अप्रेल-1910 - मार्च- 1981
अब्दुल हमीद 'अदम'
अर्थ : बादा-ग़ुसारों = शराबियों, ख़ुलूस = साफ दिल
बेहतरीन प्रस्तुति, महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें।
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (08-03-2016) को "शिव की लीला अपरम्पार" (चर्चा अंक-2275) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
ब्लॉग पर पधारने हेतु धन्यवाद...
ReplyDeleteसार्थक व प्रशंसनीय रचना...
ReplyDeleteमहाशिवरात्रि पर्व की शुभकामनाएँ!!
बहुत अच्छी रचना।
ReplyDeleteAcchi rachna
ReplyDelete