उमर हिरनिया हो गई, देह-इन्द्र-दरबार
मौसम संग मोहित हुए, दर्पण-फूल-बहार
मौसम संग मोहित हुए, दर्पण-फूल-बहार
दर्पण बोला लाड़ से, सुन गोरी, दिलचोर
अंगिया न सह पाएगी, अब यौवन का जोर
यूं न लो अंगड़ाइयां, संयम हैं कमजोर
देर टूटते ना लगे, लोक-लाज की डोर
शाम सिंदूरी होंठ पर, आँखें उजली भोर
बैरन नदिया सा चढ़े, यौवन ये बरजोर
तितली झुक कर फूल पर, कहती है आदाब
सीने में दिल की जगह, रक्खा लाल गुलाब
अंगिया न सह पाएगी, अब यौवन का जोर
यूं न लो अंगड़ाइयां, संयम हैं कमजोर
देर टूटते ना लगे, लोक-लाज की डोर
शाम सिंदूरी होंठ पर, आँखें उजली भोर
बैरन नदिया सा चढ़े, यौवन ये बरजोर
तितली झुक कर फूल पर, कहती है आदाब
सीने में दिल की जगह, रक्खा लाल गुलाब
जब से होठों ने छुए, तेरे होंठ पलाश
उस दिन से ही हो गई, अम्बर जैसी प्यास
रहे बदलते करवटें, हम तो पूरी रात
अब के हम मिलेंगे, करनी क्या-क्या बात
प्राण-गली से गुजर रही, हंसी तेरी मनमीत
काला जादू रूप का, कौन सकेगा जीत
गढ़े कसीदे नेह के, रंगों के आलेख
पास पिया को पाओगे, आँखें बंद कर देख
~मनोज खरे
संयुक्त संचालक, जनसंपर्क विभाग, मध्य प्रदेश शासन.
उस दिन से ही हो गई, अम्बर जैसी प्यास
रहे बदलते करवटें, हम तो पूरी रात
अब के हम मिलेंगे, करनी क्या-क्या बात
प्राण-गली से गुजर रही, हंसी तेरी मनमीत
काला जादू रूप का, कौन सकेगा जीत
गढ़े कसीदे नेह के, रंगों के आलेख
पास पिया को पाओगे, आँखें बंद कर देख
~मनोज खरे
संयुक्त संचालक, जनसंपर्क विभाग, मध्य प्रदेश शासन.
रंगोत्सव के पावन पर्व पर हर्दिक शुभकामनायें...सार्थक प्रस्तुति...
ReplyDeleteसार्थक रचना
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