शाम की परतें
खोल कर देखें
कितना कुछ
छुपा रखा है
दिन ने परदे में ...
..............
दिन भर का
चढ़ा हुआ गिलाफ
उतार कर देखना
शाम की परतें गिनना
और फिर सोचना
रात कितनी लम्बी होगी
.........................
दफ़्न रहते हैं
जाने कितने ही
अधूरे ख्वाब
मजबूर ख्वाहिशें ,
भूखे पेट , टूटे शरीर
पूरे दिन का दर्द समेटे
आँखों में पालते हैं
रात का इन्तजार
कि शायद नींद पनाह देदे
चार पल को ही
शाम की परतों में कितना। कुछ छुपा है ।वाह क्या बात कही है।
ReplyDeleteशाम की परतों में कितना। कुछ छुपा है ।वाह क्या बात कही है।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (07-03-2016) को "शिव का ध्यान लगाओ" (चर्चा अंक-2274) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'