प्यार का दर्द भी काम आएगा दवा बनकर,
आप आ जाएँ अगर काश मसीहा बनकर।
तुम मिरे साथ जो होते तो बहारें होतीं,
चीखते फिरते न सहराओं की सदा बनकर।
मैंने हसरत से निगाहों को उठा रक्खा है,
तुम नज़र आओ तो महताब की ज़िया बनकर।
मैं तुझे दिल में बुरा कहना अगर चाहूँ भी,
लफ़्ज़ होंठों पे चले आएँगे दुआ बनकर।
मैं किसी शाख़ पे करती हूँ नशेमन तामीर,
तुम भी गुलशन में रहो ख़ुश्बु-ओ-सबा बनकर।
मुन्तज़िर बैठी हूँ इक उम्र से तश्ना सीमा,
सहने-दिल पे वो न बरसा कभी घटा बनकर।
-सीमा गुप्ता "दानी"
seemagupta9@gmail.com
आपने लिखा...
ReplyDeleteकुछ लोगों ने ही पढ़ा...
हम चाहते हैं कि इसे सभी पढ़ें...
इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना दिनांक 29/03/2016 को पांच लिंकों का आनंद के
अंक 256 पर लिंक की गयी है.... आप भी आयेगा.... प्रस्तुति पर टिप्पणियों का इंतजार रहेगा।
अच्छा लिखा आपने
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (30-03-2016) को "ईर्ष्या और लालसा शांत नहीं होती है" (चर्चा अंक - 2297) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'