Sunday, March 20, 2016

गिन लेना हमको अपने दिलदारों में............महेश चन्द्र गुप्त ’ख़लिश’


वक़्त बिताया अब तक तो हमने रंगीं गुलज़ारों में
आज कहो तो जी लेंगे हम इन अंधे गलियारों में

कोई ख़ता तो होगी जो तुम नाराज़ी में बैठे हो
उफ़ न कभी लब से निकलेगी, चिनवा दें दीवारों में

जो न कभी तुमने चाहा वो दिल में ना लाए हरगिज़
लोग हमारी गिनती करते हैं दिल के लाचारों में

जान लिया नामुमकिन है दिल को पाना अहसासों से
पास न दौलत तो मत जाना उल्फ़त के बाज़ारों में

आज तलक मुँह ना मोड़ा है ख़लिश वफ़ा से तो हमने 
भूल न जाना, गिन लेना हमको अपने दिलदारों में.

बहर --- २११२  २२२२  २२२२  २२२२
 महेश चन्द्र गुप्त ’ख़लिश’

2 comments:

  1. सुंदर रचना...रंगोत्सव की शुभकामनयें...

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