Friday, February 12, 2016

और फिर नारी ने कहा.....इन्द्रा












और फिर नारी ने कहा
हे नर !
मैं तो हमेशा से वहीँ हूँ 

जहाँ मुझे होना था 
न तुम्हारे आगे न पीछे 
न ऊपर न नीचे 
बस बराबरी में

मुझे तो कभी भी महान बनने की चाहत न थी 
तुम ही हमेशा  ऊंचा बनने की होड़ में लगे रहे 
महान बनने के रास्ते तो और भी थे
उन पर चल तुम ईश्वर बन सकते थे 
पर तुमने यह क्या किया ?   

मुझे नीचा  दिखाने की कोशिश में 
खुद से कमजोर जताने  की ख्वाहिश में 
खुद को महान दिखने  की चाहत में 
मुझ पर बलात्कार और जुर्म कर 
खुद को ही नीचा गिरा कर 
मुझ स्वतः ही  उपर  उठा दिया 

- इन्द्रा
मूल रचना


2 comments:

  1. सुंदर अति सुंदर....

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (13-02-2016) को "माँ सरस्वती-नैसर्गिक शृंगार" (चर्चा अंक-2251) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    बसन्त पंञ्चमी की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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