12 अक्टूबर, 1938 - 8 फरवरी, 2016
अपनी मर्जी से कहां अपने सफर के हम हैं,
रुख हवाओं का जिधर का है उधर के हम हैं
कश्मीरी परिवार के निदा जी दिल्ली में जन्मे और ग्वालियर में आपने शिक्षा पाई थी. उनके पिता जी भी उर्दू के कवि थे. 1947 में देश के बटवारे के दौरान पिताजी पाकिस्तान गये थे, लेकिन निदा जी भारत में रहे थे. युवा निदा ने एक बार मंदिर के पास से गुजरते हुए सूरदास का राधा के बारे में लिखा पद सुना था, जिसमे श्री कृष्ण से जुदा होने का राधा जी के दुःख का वर्णन था, उससे प्रभावित हो कर वे कवि बने थे, ऐसा निदा फाजली कहते थे. मीरा और कबीर से प्रभावित निदा गाज्ली ने अपनी कविता का दायरा टी. एस. इलियट, गोगोल, एंटोन चेखोव और टाकासाकी तक विस्तुत किया था.
काम की खोज में निदा जी 1964 में बम्बई आये थे. शुरूआती दौर में उन्हों ने हिंदी साप्ताहिक धर्मयुग और ब्लिट्स में लिखा था. उनसे हिंदी फिल्मों के निर्माता-निर्देशक-लेखक प्रभावित थे. उनको मुशायरा में बुलाया जाता था. उनकी गज़ल और अदायगी लोकप्रिय हुई. उसमे गज़ल, दोहा और नज़म का मिश्रण श्रोताओ को मिलता था. उन्हों ने कविता को सादगी बक्षी. उनकी प्रसिध्ध पंक्ति: ‘दुनिया जिसे कहते है, जादू का खिलौना है, मिल जाये तो मिटटी है, खो जाये तो सोना है’. आपको उनकी ‘आ अभी जा (सुर), तू इस तरहा से मेरी जिंदगी में सामिल है (आप तो ऐसे न थे) और होश वालों को खबर क्या बेखुदी क्या चीज है, इश्क कीजे और समजिये झिंदगी क्या चीज़ है (सरफ़रोश) याद होगी. उस गज़ल का एक बेहतरीन शेर है, ‘हम लबों से कह नहीं पाए, उनसे हाल-ए-दिल कभी; और वो समझे नहीं, ये ख़ामोशी क्या चीज़ है’. ‘इस रात की सुबह नहीं,’ और ‘गुडिया’ में भी उनके गीत थे. कमाल अमरोही की ‘रज़िया सुलतान (1983) बनती थी और उनके गीतकार जाँ निसार अख्तर का निधन हुआ. तब निदा फाजली ने उस फिल्म के दो गाने लिखे थे.
निदा फाजली को भारत का बटवारा पसंद नहीं था. कोमी और राजकीय दंगो के सामने वे आवाज़ उठाते थे. उसका नतीजा ये था की 1992 के दंगो में उन्हें अपने आप को बचने किसी दोस्त के घर रहना पड़ा था. उनके ‘राष्ट्रिय एकता’ का पुरस्कार मिला था. उन्होंने उर्दू, हिंदी और गुजराती में 24 पुस्तकें लिखी थी. उनकी कुछ कविता बच्चे स्कूल में पढते हैं. उनके आत्मकथात्मक उपन्यास ‘दीवारों के बिच’ के लिये मध्य प्रदेश सरकार ने निदा फाजली को ‘मीर तकी मीर’ एवॉर्ड दिया था. उनके प्रसिद्द लेखन कार्य है – मोर नाच, हम कदम और सफर में धूप तो होगी..
निदा फाजली को साहित्य अकादमी का एवोर्ड 1998 में, श्रेष्ठ गीतकार का स्टार स्क्रीन एवोर्ड ‘सुर’ के लिये और 2013 में पद्मश्री का इल्काब मिला था.
निदा जी को हमने सूरत के गाँधी स्मृति भवन में तीन-चार बार सुना है.. मेरा उनका लिखा प्रिय शेर है, ‘घर से मस्जिद हो बहुत दूर, तो चलो यूँ ही सही, किसी रोते हुए बच्चे को हँसाया जाये.’ कवि अपनी कविताओं से अमर होते है, निदा फाजली भी अमर है.
संकलन
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