कितने सपने देखें
और कितना मन को मारें
दिल को कौन बताये
लाख जतन करो सब कुछ पालूं
फिर भी कुछ छूट ही जाये
दिल को कौन बताये
आधा छोड़ पूरे भाग न मनवा
जो है वो भी छिन ना जाये
दिल को कौन बताये
अपनी सीमा खुद पहचानो
जितनी चादर पाओं पसारो
दिल को कौन बताये
सब की अपनी मजबूरी है
कब तक कोई साथ निभाए
जब तक का है साथ किसीका
हंस कर ले बतियाये
दिल को कौन बताये
-इन्द्रा
मूल रचना
nice ..............
ReplyDeleteउम्दा पंक्तियाँ..
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