Monday, February 8, 2016

उड़ान....इन्द्रा
















हमें ही  जीने दो
मत थोपो अपने सपने
हमें  ही बुनने दो
अच्छे और बुरे का
बस फर्क तुम बता दो
कैसे गगन में उड़ना
इतना बस सिखा दो
लकीर के फ़क़ीर
बनना नहीं हमें
नए रस्ते अपने लिए
तलाशेंगे  खुद ही हम
तुम तो बस हमें
उड़ने को छोड़ दो
या साथ हो लो हमारे
नए नए सपने बुनो
सपने बनाने की
कोई उम्र होती नहीं
छोड रूढ़ीवाद  और
पुरानी परम्पराएँ
सब नया  नहीं है बुरा
विश्वास करके देखो
मेरा हाथ पकड़ कर
फिर से उड़ कर देखो
जब सब का साथ हो
कठनाई डर  के भागेगी
मंज़िल सच हमें
खुद ब खुद तलाशेगी
-इन्द्रा

मूल रचना

3 comments:

  1. बिल्कुल सही है। विचार देने के बजाय विचारशीलता ही देनी चाहिए।

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  2. आपने लिखा...
    कुछ लोगों ने ही पढ़ा...
    हम चाहते हैं कि इसे सभी पढ़ें...
    इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना दिनांक 09/02/2016 को पांच लिंकों का आनंद के
    अंक207 पर लिंक की गयी है.... आप भी आयेगा.... प्रस्तुति पर टिप्पणियों का इंतजार रहेगा।

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  3. सच है ... कुछ सहारा काफी है ... उड़ान तो खुद को तय करने देना चाहिए ...
    भाव पूर्ण ...

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