चुटकी भर धूप
मुट्ठी भर सपने
थोड़ी सी ख़ुशी
दो चार अपने
बस बीज देंगे
जीवन की धरती
फिर उगेंगी
मुस्काने ही मुस्काने
हमारे आँगन में
तुम भी आना
मिल के हँसेंगे
उधड़ते हुये
रिश्तों को ढांप-ढूंप
दुनिया की नज़रों से बचाकर
कब तक
रफू करे कोई …..
अगर तरीके से हो
एक सलीके से हो ,
तो ठीक !
वरना कब तक
जीने का क़र्ज़
अदा करे कोई …..
चाँद पहरे पर है
और चांदनी … मुस्तैद
यादें भी
यहाँ वहाँ लटकी हुयी
दिल के दरख़्त पे,
मानों.. किसी केइंतज़ार में
मगर सब गुपचुप
जैसे डर हो कि
जरा सी आहट से
कहीं रात का
सन्नाटे का जादू
टूट न जाये
देशों की सीमायें
नहीं देखती
जाति या धर्म भी
नहीं देखती
वो तो बस
अँधेरा देखती है
और हर घर को
रोशन करती है
अपना धर्म समझ कर !!
कुछ तो लोग कहेंगे ही ….
कहने दो उन्हें
जो कुछ कहते हैं
तुम उनसे…
हजार गुना बेहतर हो
जो दूसरों के कन्धों को
सीढ़ी बनाकर
ऊपर चढ़ते हैं
और फिर
सीना तान कर
खुद को पर्वत समझते हैं
जाने कितने प्रश्नचिन्ह
जिन्हें हम
या तो जान कर
या अनजाने में
बस
यूँ ही छोड़ देते हैं
और पूरी ज़िंदगी
उन के इर्द गिर्द जीते हैं….
...............
*मंजू मिश्रा*
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (21-02-2016) को "किन लोगों पर भरोसा करें" (चर्चा अंक-2259) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर क्षणिकाएं
ReplyDeleteसुन्दर रचनाएँ
ReplyDeleteDhanywad Yashoda !
ReplyDeletemeri rachnaon ko apni dharohar me sahej kar tumne jo sneh diya hai, uske liye bahut bahut abhar
sasneh
Manju
www.manukavya.wordpress.com