मुझे पुकार लो कभी तुम मुस्कुरा के,
झुकी-झुकी सी नज़र से शरमा के।
खिले हुए सूरत-ए-कँवल को,
दिन बहुत हो चुके,
हँसे हुए लब़-ए-ग़ज़ल को,
दिन बहुत हो चुके,
वही अदा का दीदार दो फिर जुल्फ़ उठाके॥1॥
गुज़र ना जाए दिन हँसी के,
फिर सबा बन के,
कभी मिलो तो हम से आ के,
नयी सुबह बन के,
छलक उठेंगे दिल के अरमां सिसकिया के॥2॥
सिले हुए लबों से मैं क्या,
इक़रार करूँ,
सुलगते जज़्बा लेके कब तक,
इंतज़ार करूँ,
ज़रा सा छू लो आ के दिल को तरस खा के॥3॥
नज़ारों में भी इन बहारों की,
एक वीरानी है,
ज़रा बढ़ाओ भी ये क़दम कि,
पास आनी है,
करो ना देर, क्या मिलेगा दिल जला के॥4॥
- सुहानता "शिकन"
बहुत सुन्दर !
ReplyDeleteBahut khoob ....
ReplyDeleteBahut khoob ....
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (27-02-2016) को "नमस्कार का चमत्कार" (चर्चा अंक-2265) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
अती सुंदर
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ReplyDeleteबहुत खूबसूरत कविता
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