जब-जब मानसून बरसा
उसके साथ बरसे तुम
तुम्हारी यादें
तुम्हारी बातें
और मेरी आँखें।
जब-जब मानसून बरसा
उसके साथ बरसा मेरा वजूद
भीगा मेरा मन
और बढ़ उठी तपन।
जब-जब मानसून बरसा
उसके साथ बरसी
तुम्हारी तीखी बातों की किरचें
मन में जहाँ-तहाँ उग आई
बिन मौसम की मिरचें।
मानसून नहीं बरसा है यह
इसके साथ, बस बरसे हो तुम
कैसे बरसता मानसून
जब मेरी मन-धरा से तुम हो गए हो गुम।
-फाल्गुनी
मॉनसून अपने साथ कई भूली-बिसरी यादें ले कर आता है...और मन थोड़ा सा रूमानी हो जाता है...
ReplyDeleteACCHA LGA POST DEKH KR ..SUNDER ABHIVYKTI
ReplyDeleteBahut hee bhavpurna abhivykti, yaadon mein sarabor.................
ReplyDeleteबहुत सुंदर ।
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