अब अंतर में अवसाद नहीं
चापल्य नहीं उन्माद नहीं
सूना-सूना सा जीवन है
कुछ शोक नहीं आल्हाद नहीं
तव स्वागत में हिलता रहता
अंतर वीणा का तार प्रिये
इच्छाएं मुझको लूट चुकी
आशाएं मुझसे छूट चुकी
सुख की सुन्दर-सुन्दर लड़ियां
मेरे हाथों से टूट चुकी
खो बैठा अपने हाथों ही
मैं अपना कोष अपार प्रिये
फिर कर लेने दो प्यार प्रिये
- दुष्यन्त कुमार
स्रोतः रसरंग
pyar ki jinda ummidon ke saanth ,dushyant ji aapki rachna kaafi sunder hai.
ReplyDeleteBahut hee bhawpurna rachna.
ReplyDeleteSundar bhawpurn rachna
ReplyDeleteSundar rachana
ReplyDeletenice
ReplyDeleteसाझा करने के लिए धन्यवाद...
ReplyDeleteखो बैठा अपने हाथों ही
ReplyDeleteमैं अपना कोष अपार प्रिये
फिर कर लेने दो प्यार प्रिये----
प्रेम का शाश्वत सच --- बहुत सुन्दर
सादर ---
आग्रह है-- जेठ मास में--