फादर्स डे पर
रात-रात भर खांसी चलती, नींद न आती बापू को,
बिटिया जब से युवा हुई है, चिंता खाती बापू को.
ढेरों दर्द,हज़ारों ग़म, वे अपने दिल में पाले हैं,
इसलिए ईश्वर ने दी है, चौड़ी छाती बापू को.
किसी जाने आभा सेर वे अकेले खाते थे,
आज बड़ी मुश्किल से लगती है एक चपाती बापू को.
"धापू" फूल रही सरसों-सी, उफन रही है नदिया-सी,
कभी हंसती है जी-भर, कभी ढहाती बापू को.
एक अकेला बेटा वह भी गाँव छोड़कर चला गया
उसे शहर में कभी न सूझी, लिख दूँ पाती बापू को.
बूढ़ी आंखे लगता है, अब इसी आस पर जिन्दा है,
शायद आए कभी देखने, नन्हा नाती बापू को.
-दिनेश प्रभात
(वल्लभ डोंगरे के संयोजन में आए संकलन "पिता" से)
प्राप्ति स्रोतः मधुरिमा
badhiya
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति
ReplyDeleteसाझा करने का आभार
बहुत सुंदर ।
ReplyDeleteपितृ दिवस पर सुन्दर रचना...
ReplyDeleteGood
ReplyDeleteपितृ दिवस के मौके पर वल्लभ डोंगरे जी सुन्दर रचना प्रस्तुति के लिए आभार!
ReplyDeleteसुंदर रचना
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