तुमने रखा मेरी गुलाबी हथेली पर
एक जलता हुआ शब्द-अंगारा
और कहा कि चीखना मत
बस यही सच है रिश्ता हमारा।
तुमने चाहा कि तुम्हारे शब्द की
जलती हुई चटकन को भूल
तुम्हें एक मुस्कान का शीतल छींटा दूँ
पर कैसे करती मैं वह,
जब हथेली में दर्द के हरे छाले
निकल आए।
और मेरे सुलगते सवालों के
तुम्हारे तीखे जवाब चलकर आए।
रिश्तों की दहलीज पर आज
फिर मैंने सब कुछ हारा,
बस, एक शब्द तुम्हारा
और खेल खत्म हुआ सारा।
-फाल्गुनी
वाह ।
ReplyDeletesunder aur umda abhivykti....
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteबस, एक शब्द तुम्हारा
ReplyDeleteऔर खेल खत्म हुआ सारा। ,,,सुन्दर !
नौ रसों की जिंदगी !
बेहतरीन शब्दों में पिरोये भाव
ReplyDeleteरिश्तों की दहलीज पर आज
ReplyDeleteफिर मैंने सब कुछ हारा,
बस, एक शब्द तुम्हारा
और खेल खत्म हुआ सारा।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया प्रस्तुति।
ReplyDeleteबढ़िया कविता
ReplyDeleteतुमने चाहा कि तुम्हारे शब्द की
ReplyDeleteजलती हुई चटकन को भूल
तुम्हें एक मुस्कान का शीतल छींटा दूँ
पर कैसे करती मैं वह,
जब हथेली में दर्द के हरे छाले
निकल आए-----
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
सादर -----
"शब्द बाण"
ReplyDeleteशब्द बान से आँगन मेरा,
पूरी तरह पिट रहा?
बीच गगन टिमटिमाता दीप,
जाने कब से दिख रहा॥
आप की रचना बहुत सुन्दर है| जब हथेली में दर्द के हरे छाले
निकल आए।
और मेरे सुलगते सवालों के
तुम्हारे तीखे जवाब चलकर आए।
कल 24/जून/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद !