Thursday, June 27, 2013

ललकारो न मेरी शक्ति को...............नीना वाही (अप्रवासी भारतीय)




खोल दे पिंजरा, उड़ने दे मुझे
उन्मुक्त पवन सा, उड़ने दे मुझे

नील गगन थी थांव मेरी
पंख हैं कोमल कठोर इरादे
उड़ने दे मुझे, उड़ने दे मुझे

खिलने दे मुझे, मुझे खिलने दे
कोमल कली जान न मसल मुझे
खिलने से पहले ही न कुचल मुझे
महकने दे मुझे, सु‍व‍ासित पुष्प बनूं मैं
खिलने दे मुझे, मुझे खिलने दे

पढ़ने दे मुझे, पढ़ने दे मुझे
ज्ञान ही है शक्ति मेरी
विद्यालय ही है आलय मेरा
घर के घेरे में न घेर मुझे
पढ़ने दे मुझे, पढ़ने दे मुझे,

ओस की बूंद सी हूं मैं
शीतलता ही है तासीर मेरी
न झोंक मुझे संघर्षों की तपती लू में
सुखा दे जो मेरा ही अस्तित्व
भाई है तू मेरा तो बांध मुझे राखी
रक्षा की तूने मेरी रक्षक बनूं मैं तेरी

शक्ति मुझमें भी है भूल न जाना
सम्मान करो मेरी शक्ति का
ललकारो न मेरी शक्ति को।

---नीना वाही (अप्रवासी भारतीय)

9 comments:

  1. खुबसूरत रचना... बहुत बढिया प्रस्तुति!!

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  2. खुबसूरत रचना.

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  3. बहुत बढिया प्रस्तुति!

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  4. मार्मिक चित्रण...उम्दा प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...


    @मानवता अब तार-तार है

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  5. आदरणीया , अति सुन्दर ह्रदयस्पर्शी एवं अनेकों के मन की बात आपने इस कविता में की है कविता से मिलता हुआ चित्र मनोहारी होने के साथ साथ ही अपने आप में कविता का ही एक रूप है ,बधाई स्वीकार करें ! chitranshsoul.blogspot.com

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  6. वाह , मर्मस्पर्शी रचना, शुभकामनाये , यहाँ भी पधारे

    http://shoryamalik.blogspot.in/2013/04/blog-post_5919.html

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  7. भावनाओं के प्रबल आवेग की प्रांजल धारा सी रचना ! बहुत सुंदर !

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