आज बारिश,
लगती है नई।
नए अर्थ समझती है।
पहली बारिश पर,
मिटटी की सौंधी महक,
जैसे
प्रथम प्रेम से परिचय।
फिर बरसे
तो प्रेम-सी ही
शीतलता
कभी तेज बौछार
चुभती तन को,
मानो प्रेम की हो
आक्रामकता
और जब बदली
बरस जाए-
तो व्योम उतना ही
स्वच्छ और निर्मल,
जितना कि प्रेम।
स्पर्श बिना मन को
भिगोने का अहसास
देती है पहली बारिश।
लगती है नई।
नए अर्थ समझती है।
पहली बारिश पर,
मिटटी की सौंधी महक,
जैसे
प्रथम प्रेम से परिचय।
फिर बरसे
तो प्रेम-सी ही
शीतलता
कभी तेज बौछार
चुभती तन को,
मानो प्रेम की हो
आक्रामकता
और जब बदली
बरस जाए-
तो व्योम उतना ही
स्वच्छ और निर्मल,
जितना कि प्रेम।
स्पर्श बिना मन को
भिगोने का अहसास
देती है पहली बारिश।
-ज्योति जैन
बड़ी खूबसूरती से परिभाषित किया है पहली बारिश को यशोदा जी ! उत्कृष्ट रचना !
ReplyDeleteमनोरम रचना, शीतल रिमझिम!!
ReplyDeleteस्पर्श बिना मन को
ReplyDeleteभिगोने का अहसास
देती है पहली बारिश।
स्पर्श बिना मन को
पूरी नहीं होती रचना
ये रचना सार्थक है .........
और जब बदली
ReplyDeleteबरस जाए-
तो व्योम उतना ही
स्वच्छ और निर्मल,
जितना कि प्रेम।
अति सुन्दर ज्योति जी !
आपकी यह रचना कल शनिवार (15 -06-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना..
ReplyDeleteऔर जब बदली
बरस जाए-
बहुत सुंदर
बहुत सुंदर
वर्षा ऋतु का स्वागत करती बेहतरीन रचना
ReplyDeleteवाह-- पहली बरसात की सुखद अनुभूति-----
सादर
आग्रह है- पापा ---------
बहुत सुन्दर भाव लिए सुन्दर सी रचना..
ReplyDelete:-)
पहली वर्षा सी सोंधी सरस रचना अभिव्यक्ति!
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