Sunday, June 2, 2013

उठा कर क्यों न फेंकें सारी चीज़ें................ जॉन एलिया.



नया एक रिश्ता पैदा क्यों करें हम
बिछड़ना है तो झगडा क्यों करें हम

ख़ामोशी से अदा हो रस्मे-दूरी
कोई हंगामा बरपा क्यों करें हम

ये काफी है कि हम दुश्मन नहीं हैं
वफादारी का दावा क्यों करें हम

वफ़ा इखलास कुर्बानी मोहब्बत
अब इन लफ़्ज़ों का पीछा क्यों करें हम

सुना दें इस्मते-मरियम का किस्सा
पर अब इस बाब को वा क्यों करें हम

ज़ुलेखा-ए-अजीजाँ बात ये है
भला घाटे का सौदा क्यों करें हम

हमारी ही तमन्ना क्यों करो तुम
तुम्हारी ही तमन्ना क्यों करें हम

किया था अहद जब लम्हों में हमने
तो सारी उम्र इफा क्यों करें हम

उठा कर क्यों न फेंकें सारी चीज़ें
फकत कमरों में टहला क्यों करें हम

नहीं दुनिया को जब परवाह हमारी
तो दुनिया की परवाह क्यों करें हम

बरहना हैं सरे बाज़ार तो क्या
भला अंधों से परा क्यों करें हम

क्यूँ ना चबा ले खुद ही अपना ढांचा
तुम्हे रातिब मुहय्या क्यों करे हम

हैं बाशिंदे इसी बस्ती के हम भी
सो खुद पर भी भरोसा क्यों करें हम

पड़ी रहने दो इंसानों की लाशें
ज़मीं का बोझ हल्का क्यों करें हम

ये बस्ती है मुसलामानों की बस्ती
यहाँ कारे-मसीहा क्यों करें हम



--- जॉन एलिया

इखलास = : purification, purity, sincerity, candour, selflessnessअहद = Promise, commitmentईफा = Fulfillment / Observanceबाब = खिड़की, windowवा = खुला, openरातिब = राशन , ration, portion of meals.बरहना = जिसके शरीर पर कोई वस्त्र न हो। कार = work , deed, function, duty

9 comments:

  1. बहुत ही खूबसूरत अभिव्यक्ति

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  2. waaaaaaaaaaah jon sahb bhot bde fankar hai bhot khub danyvad n jane kitni gazle yad dila di apne

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  3. बहुत सुन्दर ग़ज़ल. जों एलिया साब का भी जवाब नहीं. ग़ज़ल से भी ज्यादा दिलकश इनके शेर कहने का अंदाज़ होता था.

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  4. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति

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  5. bahut hi behtareen baat.......

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  6. वाह बेहतरीन ग़ज़ल ...

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