Sunday, May 3, 2020

मुहब्बत की ग़ज़ल....प्रीती श्रीवास्तव

खौफ क्या से क्या बना दे आदमी को।
जी रहा डर डर यूं इन्सां जिन्दगी को।।

हर तरफ तूफान चलती आँधियां हैं।
रोक लूं मैं कैसे आँखों की नमी को।।

तू बता मेरे खुदा मेरी खता क्या।
कब तलक जीती रहूं इस बेबसी को।।

याद मुझको आ रही मेरी मुहब्बत।
किस तरह पूरी करूं उसकी कमी को।।

छुप गया वो चाँद सा क्यूं मुस्कुरा के।
मैं छुपाऊं कैसे बढ़ती बेखुदी को।।

मुझको तेरा ही सहारा मेरे मालिक।
रोक इन बेमौत मरती जिन्दगी को।।

कैसे कह दूं अब मुहब्बत की ग़ज़ल मैं।
हर तरफ रोते देखा हर आदमी को।।
-प्रीती श्रीवास्तव

4 comments:

  1. बहुत सुन्दर

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  2. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 03 मई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. वाह!!!
    बहुत सुन्दर सृजन।

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