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मेरे सीने में
एक दर्द उठता है
एक बार नहीं
बार बार उठता है ...
एक औरत हूँ
दूसरी औरत को
बेइज्जत होते देख मन
हाहाकार कर उठता है .......
अखबार के पन्ने हों या
दूरदर्शन में खबर हो
तन ,मन,जान से खेली जाती
बेबस औरत की कहानी होती है .....
ईश्वर ने क्या वरदान दिया है
औरत के तन मन को
दुधमुंही बच्ची से बूढी तक
हवस में रौंदी जाती है .......
निष्पाप शिशु क्या जाने
ज़िंदगी की इस बेबसी को
दर्द से कराहती , बिलखती
बस ज़ार ज़ार रो लेती है ......
जिस मर्द को औरत ने
जन्म दिया ,माँ का रुप धरा
देवी कहलाने वाली भी क्योंकर
हवस का शिकार बनती है ........
शिक्षा ,दीक्षा ,मान ,प्रतिष्ठा
सब धरे रह जाते हैं
माँ बहनों के लाज के रक्षक ही
जब कभी भक्षक बन जाते हैं ........
औरत की बेबसी ,लाचारी सुन
मन विचलित हो जाता है
समाज में वह केवल क्यों
हाड़ मांस ही समझी जाती है ....
पुरुष की मानसिकता में
क्यों इतनी बर्बरता छाई है
कुछ पल की कुत्सित सोच लिए
औरत की आबरु से क्यों खेलता है .......
बेटी बचाओ के नारे को
हर पुरुष समझ नहीं पाता है
स्वच्छ भारत की स्वच्छ सोच पर
हर पुरुष क्यों अमल नहीं करता है .....
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- चंचलिका शर्मा
शिक्षा ,दीक्षा ,मान ,प्रतिष्ठा
ReplyDeleteसब धरे रह जाते हैं
माँ बहनों के लाज के रक्षक ही
जब कभी भक्षक बन जाते हैं .......
बहुत खूब...।
बहुद सुंदर
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