वज़्न 2122. 2122. 212
मतला
रस्मे उल्फत है गवारा क्यों नहीं
दर्द है दिल का सहारा क्यों नहीं ।।
लाड़ से उसने निहारा क्यों नहीं
और नज़रों का इशारा क्यों नहीं ।।
इश्क मे ऐसा अजब दस्तूर है
वो किसी का है हमारा क्यों नहीं ।।
प्यार से उसने लगाया जब गले
आपने देखा नज़ारा क्यों नहीं .।।
आंख नम है गर्म सांसे किसलिए
दर्द का दिल में शरारा क्यों नहीं ।।
इश्क है मेहमान दिल में आज भी
प्यार कम है पर ज़ियादा क्यों नहीं ।।
जा रहा था राह से मेरी मगर
प्यार से उसने पुकारा क्यों नहीं।।
-अरुणिमा सक्सेना
28. 05. 20
बहुत सुंदर।
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 31 मई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteजा रहा था राह से मेरी मगर
ReplyDeleteप्यार से उसने पुकारा क्यों नहीं।।
वाह।खूबसूरत