चुप नहीं रह सकता आदमी
जब तक हैं शब्द
आदमी बोलेंगे
और आदमी भले ही छोड़ दे लेकिन
शब्द आदमी का साथ कभी छोड़ेंगे नहीं
अब यह आदमी पर है कि वह
बोले ...चीखे या फुसफुसाये
फुसफुसाना एक बड़ी तादाद के लोगों की
फितरत है!
बहुत कम लोग बोलते हैं यहाँ और...
चीखता तो कोई नहीं के बराबर ...
शब्द खुद नहीं चीख सकते
उन्हें आदमी की जरूरत होती है
और ये आदमी ही है जो बार-बार
शब्दों को मृत घोषित करने का
षड्यंत्र रचता रहता है!
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 13 मई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 14.5.2020 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3701 में दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
ReplyDeleteधन्यवाद
सुन्दर रचना।
ReplyDeleteवाह लाजवाब सही कहा आपने।
ReplyDeleteशब्द खुद नहीं चीख सकते
उन्हें आदमी की जरूरत होती है।
सुंदर सृजन।
वाह !बेहतरीन सृजन 👌
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