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चहुँ ओर
चहकती चहल - पहल में
जाने कहाँ खो गई हूँ , मैं !!
और , तुम कहते हो
इस चहल - पहल का एक अहम हिस्सा हूँ , मैं .....
एक हलचल
एक बेचैनी
एक तलाश
एक तिश्नगी
कुछ भ्रान्त हूँ .. मैं क्लांत हूँ
कि, कौन कहानी का किस्सा हूँ ,
मैं ?
कितने मुखौटे पहने मैंने
कब - कब दर्पण देखे मैंने ....
कौन जगह है
कायनात में , मेरे खातिर
क्या है मेरा ठिकाना .....
कहाँ छुपे हैं , अर्श मेरे
कौन गढ़ता है , संघर्ष मेरे ...
किस ने लिखी यह अधूरी कहानी
मैं कहाँ सम्पूर्ण कहानी ...
कि , मेरे ही आंगन में
महज मेहमां नवाजी का
एक अनूठा किस्सा हूँ , मैं ...
और , तुम कहते हो
इस चहल - पहल का एक अहम हिस्सा हूँ , मैं ....
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-वीणा जैन
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 23 मई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteसुंदर
ReplyDeleteबिलकुल! एक अहम हिस्सा हैं आप।
ReplyDeleteलेखन से यही मेरे समझ में आया
" मेरे ही आंगन में
ReplyDeleteमहज मेहमां नवाजी का
एक अनूठा किस्सा हूँ , मैं ..."...
वाह ! बड़ी आसानी से आपने तो मानव-जीवन की क्षणभंगुरता को स्वीकार किया है। नमन आपको और आपकी दार्शनिक विचारधारा/लेखन को, वर्ना लोगबाग तो अपनी अहमियत को जताने के लिए अपनी गर्दन अकड़ाए फ़िरते हैं ...
सुंदर प्रस्तुति वीणा दीदी। नमन
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