Wednesday, July 10, 2019

एक चिड़िया मरी पड़ी थी.....एम.वर्मा

बलखाती थी
वह हर सुबह 
धूप से बतियाती थी
फिर कुमुदिनी-सी 
खिल जाती थी
गुनगुनाती थी 
वह षोडसी
अपनी उम्र से बेखबर थी
वह तो अनुनादित स्वर थी 
सहेलियों संग प्रगाढ़ मेल था 
लुका-छिपी उसका प्रिय खेल था
खेल-खेल में एक दिन
छुपी थी इसी खंडहर में
वह घंटों तक 
वापस नहीं आई थी
हर ओर उदासी छाई थी
मसली हुई 
अधखिली वह कली
घंटों बाद 
शान से खड़े 
एक बुर्ज के पास मिली
अपनी उघड़ी हुई देह से भी
वह तो बेखबर थी
अब कहाँ वह भला
अनुनादित स्वर थी 
रंग बिखेरने को आतुर
अब वह मेहन्दी नहीं थी 
अब वह कल-कल करती
पहाड़ी नदी नहीं थी
टूटी हुई चूड़ियाँ 
सारी दास्तान कह रही थीं
ढहते हुए उस खंडहर-सा 
वह खुद ढह रही थी
चश्मदीदों ने बताया
जहाँ वह खड़ी थी 
कुछ ही दूरी पर 
एक चिड़िया मरी पड़ी थी !!

लेखक परिचय - ऍम वर्मा 

11 comments:

  1. मार्मिक.. हृदय को व्यथित करता सृजन ।

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  2. ह्रदय को दर्द से छूती रचना

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  3. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में गुरुवार 11 जुलाई 2019 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  4. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 11.7.19 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3393 में दिया जाएगा

    धन्यवाद

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  5. बहुत ही हृदयस्पर्शी सृजन !

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  6. ओह्ह आह्ह
    बेहद मार्मिक
    लेखन सुंदर

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  7. बेहद हृदयस्पर्शी रचना

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  8. मर्मस्पर्शी रचना हृदय तक भेदती।

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  9. सीधे दिल को छूती मार्मिक रचना...

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