Wednesday, April 3, 2019

दृग-व्योम से क्यों बरसा है.....भारती दास

कुछ तो बता ऐ मन
क्या है तेरी उलझन
दृग-व्योम से क्यों बरसा है
व्याकुल अश्रुकण, कुछ तो....
दूर अनंत है प्रीतम का घर
धीरे धीरे बढ़ तू चलकर
पथ में हो शूलों का वन
या दुर्गम हो क्षण, कुछ तो....
पल-पल मिटते पल-पल बनते
क्षण-क्षण मरते क्षण-क्षण जीते
कर ना तू क्रंदन,
कर सुंदर चिन्तन, कुछ तो....
जबतक है सांसों का उद्गम
जग अपना है सबसे बंधन
मांग ले अपनापन
स्वप्न में कर विचरण, कुछ तो....
-भारती दास

7 comments:

  1. सुन्दर रचना ।

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  2. बहुत सुंदर रचना

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  3. धरोहर में शामिल इस रचना के लिए बहुत बहुत धन्यवाद

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  4. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 4.4.19 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3295 में दिया जाएगा

    धन्यवाद सहित

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  5. Vaah .... बहुत सुंदर

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