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आपके एहसास ने जबसे मुझे छुआ है
सूरज चंदन भीना,चंदनिया महुआ है
मन के बीज से फूटने लगा है इश्क़
मौसम बौराया,गाती हवायें फगुआ है
वो छोड़कर जबसे गये हमको तन्हा
बेचैन, छटपटाती पगलाई पछुआ है
लगा श्वेत,कभी धानी,कभी सुर्ख़,
रंग तेरी चाहत का मगर गेरुआ है
क्या-क्या सुनाऊँ मैं रो दीजिएगा
तड़पकर भी दिल से निकलती दुआ है
जीवन पहेली का हल जब निकाला
ग़म रेज़गारी, खुशी ख़ाली बटुआ है
वाह बेहतरीन जीवन की पहेली का जब हल निकला
ReplyDeleteग़म रेज़गारी खुशी खली बटुआ
वाह
ReplyDeleteलगा श्वेत,कभी धानी,कभी सुर्ख़,
ReplyDeleteरंग तेरी चाहत का मगर गेरुआ है
बहुत खूब .....,
बहुत ख़ूब श्वेता ! खाली बटुआ तुम रख लो, और रेजगारी हमें दे दो.
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल गुरुवार (18-04-2019) को "कवच की समीक्षा" (चर्चा अंक-3309) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
--
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल गुरुवार (18-04-2019) को "कवच की समीक्षा" (चर्चा अंक-3309) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
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डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
जीवन पहेली का हल जब निकाला
ReplyDeleteग़म रेज़गारी, खुशी ख़ाली बटुआ है.....वाह! सुन्दर दर्शन!