Tuesday, April 23, 2019

रोजनामचा.....पूजा प्रियंवदा

शाम को जब घरों में होती है रौशनी 
देखना मेरी उन आँखों से 
जिनका कभी घर न हुआ

बच्चों की हथेलियाँ थामना 
मेरे उन हाथों से 
जिन्होंने दफन किया कई अपने

अलविदा की घड़ी 
महसूस करना मेरे उस दिल से 
जो धड़कता रहा तुम्हारे जाने के बाद भी

फूल नहीं पसंद मुझे 
किताबें बहुत महंगी हैं 
समन्दर बहुत दूर है 
अकेलापन भारी है पूरी दुनिया से 
कंधे अब दुखते हैं हर वक़्त

बेचना मेरा दुःख 
जैसे कोई औरत बेचती है 
देह का एक-एक रोआं 
ताकि अपने बच्चे को सीने से लगा सके

एक जगह ढूँढना 
कहीं किसी पेड़ के पास 
पूछना उससे और मुझे इजाज़त दिलाना 
की रख सकूं अब अपना जनाज़ा 
उसकी छाँव में 
जैसे तुम्हारे सीने पर थक कर 
कभी सर रखा था
-पूजा प्रियंवदा


3 comments:

  1. Very nyccc.....philosophical....depth of emotion...god bless always

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (24-04-2019) को "किताबें झाँकती हैं" (चर्चा अंक-3315) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    पुस्तक दिवस की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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