Monday, April 1, 2019

न जाने कितने दिन.............रचनाकात :: अज्ञात


ना जाने कितने मौसम बदलेंगे
ना जाने
कितने लोगों से
कितनी
मुलाकातें बची है?
न जाने कितने दिन
कितनी रातें बची हैं?
ना जाने कितना रोना
कितना सहना बचा है?
 कब बंद हो जायेंगी आँखें
किस को पता है?
ना जाने कितने मौसम
बदलेंगे
कितने फूल खिलेंगे?
कब उजड़ेगा बागीचा
किस को पता है?
ना जाने कितनी सौगातें
मिलेंगी?
बहलायेंगी या रुलायेंगी
किस को पता है?
जब तक जी रहा
क्यों फ़िक्र करता निरंतर
ना तो परवाह कर
ना तूँ सोच इतना
जब जो होना है हो
जाएगा
जो मिलना है मिल
जाएगा
तूँ तो हँसते गाते जी
निरंतर
जो भी मिले
उससे गले लग कर
मिल निरंतर...!!

रचनाकात :: अज्ञात
प्रस्तुति करण :: सोनू अग्रवाल


14 comments:

  1. ना जाने कितना रोना
    कितना सहना बचा है?
    ......................................
    परत दर परत खुलता क्षणिक जीवन का सनातन सच
    लाजवाब...
    यशोदाजी....सोनूजी और हाँ अज्ञात भाई साहब को भी बधाई

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  2. शुक्रिया राहुल
    सुन्दर प्रतिक्रिया

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  3. जिन्होंने भी लिखा कमाल लिखा है उनको और आपको बधाई

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    1. लिखने वाले को बधाई पहुंच गई होगी
      और चुनने वाली मैं आपको धन्यवाद देती हूँ

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  4. Replies
    1. प्रणाम दीदी
      धन्यवाद

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  5. बहुत सुन्दर , बहुत सुन्दर रचना....
    :-)

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  6. शुक्रिया रीना बहन

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  7. व्यावहारिक जीवन दर्शन से भरी रचना. बहुत खूब.

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    1. शुभ प्रभात
      शुक्रिया

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  8. अति सुन्दर सृजन ।

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  9. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (02-04-2019) को "चेहरे पर लिखा अप्रैल फूल होता है" (चर्चा अंक-3293) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    अन्तर्राष्ट्रीय मूख दिवस की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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