Saturday, December 30, 2017

कैसे किसको होश रहे.....डॉ. इन्दिरा गुप्ता

नख से शिख तक भई सिंदूरी 
लाजवंती सी नार 
आयेगे वो आय रहे है 
सुनकर हुई गुलनार ! 

आवन को संदेशो ऐसो 
सुर छेड़े मन माही 
सरगम की सी सांसै है गई 
कानो में धड़कन पड़े सुनाई ! 

नयन मूँद निरखे मन माही 
लब स्मित मुस्कान सजे 
ऐसे मै गर आये साजन 
कैसे किसको होश रहे ! 

सात हाथ का घूँघट ओढ़ा 
उस पर लाल चुनरिया 
शर्म से लाल रुखसार हो गये 
लालम लाल बहुरिया ! 

- डॉ. इन्दिरा गुप्ता ✍

9 comments:

  1. बहुत सुंदर रचना
    दुल्हन के मन को दर्शाती
    श्रृंगार में डूबी भावपूर्ण रचना

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    1. आभार भावोकी सराहना के लिये

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  2. बहुत सुन्दर

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  3. बहुत सुंदर पंक्तियां

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  4. अत्यंत रोचक नववर्ष मंगलमय हो

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