Thursday, April 13, 2017

और खूब पढ़ती हूँ....मैं










पढ़ती हूँ
और खूब पढ़ती हूँ....
चार ई-पत्रिकाएँ आती है
अखबार भी पढ़ती हूँ..

ये सोचकर कि
लिखना आ जाएगा
किसी ने कहा है कि
एक अच्छा पाठक भी

लेखक बन सकता है
पर अफसोस....
आते हैं भाव मन में
बस..आते ही

दो पंक्तियों में ही 
सिमट जाते हैं...
चार डायरियों के
पृष्ठ दो-दो पंक्तियो से 

भर गई है..
उन सबको जोड़कर भी देखा...
पर कविता को न बनना था
सो नहीं बनी....

ऐसा लगता है कि
भाग्य में सिर्फ और सिर्फ
संग्रहण,संयोजन
और संम्पादन ही
लिखा है...

मन की उपज..
यशोदा

डायरी में लिखी दो पंक्तिया..
आज तक रखे हैं पछतावे की अलमारी में,
एक दो वादे जो दोनों से निभाये ना गए…





5 comments:

  1. जब भी लिखती हैं बेजोड़ लिखती हैं आप
    हमेशा लगता है हम बहने पढ़ने के लिए भी ठीक है
    पाठक तो अच्छे हैं
    तभी तो यहाँ हैं
    ढ़ेरों आशीष के संग असीम शुभकामनाएँ

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  2. आज तक रखे हैं पछतावे की अलमारी में,
    एक दो वादे जो दोनों से निभाये ना गए…
    ...बहुत सुन्दर ...

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  3. वाह !!! बहुत सुंदर ।

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  4. बहुत सुन्दर........

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